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ही सज्जनताका व्यवहार किया। किसी तरहकी जान पहचानके बिना ऐसा सौहार्द दिखाना बड़े ही उच्च हृदयके मनुष्योंका कार्य है। साध्वी मणीबेन तो साक्षात सौजन्यकी मूर्ति ही मालूम होती हैं।
सेठ हेमचंद्रजी जैसे महावीर जैन विद्यालयसे स्नेह करते थे वैसे ही उनका कुटुंब भी करता है। और उसने विद्यालयको सोलह हजारकी रकम और दी है । इस तरह आजतक सेठ हेमचंद्र अम. रचंदकी पेढीसे महावीर जैनविद्यालयको, छब्बीस हजारकी रकम मिली है । आशा है उनके पुत्ररत्न श्रीयुत नवीनचंद्र, प्रवीणचंद्र और अनिलकान्त भी अपने पिताके पदचिन्हों पर चलकर उनकी सत्कीर्तिको बढानेका प्रयत्न करेंगे।
दानवीर सेठ देवकरण मूलजी।
सेठ देवकरण मूलजी उन महान व्यक्तियोंमेंसे एक हैं, जो पाँच सात रुपये मासिककी नौकरीसे जीवन प्रारंभ करते है; धीरे धीरे आगे बढ़ते हैं, लक्षाधिपति बनते हैं, लक्ष्मीका अपनी सेविकाकी तरह उपयोग करते हैं, परोपकारमें खुले हाथों धन खर्चते हैं और इसीमें जीवनका आनंद मानते हैं।
इनका जन्म सं० १९२१ के पोस सुदी ७ के दिन मांगरोलमें हुआ था। ये ज्ञातिके वीसा श्रीमाली हैं। मांगरोलसे ये वनथली रहने गये थे और वनथलीसे धन कमानेकी तलाशमें बंबई आये और सं० १९३६ में इन्होंने ६) छः रु. मासिक वेतनपर एक कपडेकी दुकान पर नौकरी कर ली । इनकी होशियारीसे सेठ इन पर प्रसन्न रहते थे।
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