Book Title: Adarsha Jivan Vijay Vallabhsuriji
Author(s): Krushnalal Varma
Publisher: Granthbhandar Mumbai

View full book text
Previous | Next

Page 826
________________ (२३९) इनके अलावा सिद्ध क्षेत्र जैनबालाश्रमको एक अच्छी रकम दी। पालीतानेके जलप्रलयके समयमें खुदने एक बहुत बड़ी रकम दी और दूसरोंसे भी ३६०००) रुपये की मदद करवाई। गिरनारपर प्रतिष्ठा करते समय अच्छा खर्च किया। मलाड प्रतिष्ठा करने में भी बहुतसा खर्चा किया। सार्वजनिक दानसे जितनी जन संस्थाएँ चलती हैं उनमेंसे शायदही कोई ऐसी संस्था होगी जिसको इनसे मदद न मिली हो । बंबईमें जितने चंदे जैनियोंकी संस्थाओंके हुए उनमें एक भी चंदेकी फेहरिस्त ऐसी न मिलेगी जिसमें इनका नाम न हो । इस तरह 'परचूरण करीब आठ लाख रुपये दानमें दिये । इनके दानकी सारी रकम इकट्ठी की जाय तो वह लगभग बारह लाखकी होती है। ... पाठकोंको आश्चर्य होगा कि सं० १९३६ में जो व्यक्ति ६। रुपये मासिकमें नौकर हुए थे वे ही सं० १९८२ में लक्षाधिप ही नहीं लाखोंके दानी कैसे हो गये ! मगर इसमें कोई आश्चर्यकी बात नहीं है। कहा है,-' धर्म करत संसार सुख' धर्मका प्रभाव ही ऐसा ही है। धर्ममें सेठ देवकरण भाइको विशेष रूपसे लगानेवाले, स्वर्गीय पूज्य मोहनलालजी महाराजके शिष्य मुनि श्रीहर्षविजयजी महाराज थे। कहा जाता है कि उनकी कृपासे ही ये पूर्ण धर्मात्मा भी बने और धनिक भी। ___ इनकी दानशीलतासे प्रसन्न होकर समाजने इनको दानवीर की पदवी दी, और बंबईकी वीसा श्रीमाली कौमने इनको मानपत्र दिया । जब इनको मान मिला तब इन्होंने हमारे चरित्रनायक आचार्य महा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 824 825 826 827 828