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श्री न्यायाम्भो निधी सूरी, श्री विजयानंद बुध धुरी । उन्हीं के पट-गगन-चंदा, शान्त मरत है सुखकुंदा ॥ वि० ॥ प्रतिष्ठितसे प्रतिष्ठित हैं, शान्त तपी पुष्पदंत देवा । लेकोत्तर ठाठ हुआ भारी, चतुर्विध संघ करे सेवा ॥ वि० ॥ काम उत्तम हुए दोनों, बरस शत चारमें नाहीं । दशा लवपूरकी जागी, बसे जो सुखी इन माहीं ॥ वि० ॥ धन्य धन गाम पुर नगरी, जो इस विध धर्म को चाहें । तन मन धनसे शोभित, करत जो चाल. शिव राहे ॥ वि० ॥ अती अनुमोदना मेरी, आत्म लक्ष्मी अन्तर कुमुदे । प्रगट आतम हीरो चमके, वरे शिवलब्धि मन सुमुदे ॥ वि०॥
कर्ताःश्री मद्विजयवल्लभ सूरि भक्त मुनि श्री लब्धिावजयजी महाराज ।
परिशिष्ट (ख) [ इसमें वे तार दिये गये हैं जो आचार्य पद देनेके लिए आए थे। Copy of telegrams received at Lahore before
Acharyapad. 1. To Sohanvijayji, Jain House,
Bazaz Hatta, Lahore. Never miss to recognise Vallabhvijayji as acharya before Sangh to be met on Parthishtha. Reconcile Sumtivijayji any how.
Kantivijayji, Jamnagar.
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