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अपने नेतृत्वके अभिमानमें इनके कथनकी कोई परवाह न की गई। दोनोंने सेठ हेमचंदजीके यहाँ जाकर आंबिल किया । इसका परिणाम यह हुआ कि वे भी संघबाहिर कर दिये गये ।
बड़े लोगोंका कथन है कि - ' यतो धर्मस्ततो जयः । ' जहाँ धर्म है वहीं जय है । धीरे धीरे लोगोंके साहस बढ़े और सच्चे धर्मपर चलनेवाले हेमचंद भाईके साथ करीब डेढ सौ घर आ मिले। डेढ बरस तक मुकदमा चला। आखिर में पंचों और संघके नेताओंने धर्म और धर्मवीरके आगे सिर झुकाया । आपसमें फैसला हुआ और हेमचंद भाईको वापिस जाति और संघमें मिला लिया । सच है जो • सिर साँढे धर्म पालते हैं उन्हींकी धर्म रक्षा करता है । ' अन्याय रोकने के लिए हेमचंद्र भाईका उदाहरण अनुकरणीय है ।
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हेमचंदभाई बारह व्रतधारी श्रावक बननेके इच्छुक थे। नौ व्रत तक वे पालने लग गये थे । उनके घरमें देरासर था और सदा सामायिक पूजन आदि किया करते थे । अपने घर में उन्होंने ऐसा नियम बना रक्खा था कि, सारा कुटुंब एक ही साथ सामायिक करे । तदनुसार छोटे बड़े सभी एक साथ बैठकर सामायिक किया करते थे । सामायिकमें जीवविचार, नवतत्त्व, कर्मग्रंथ आदि तात्विक ग्रंथोंहीका वाचन और मनन वे प्रायः किया करते थे और सारे कुटुंबको उनका रहस्य समझाया करते थे ।
अपने अनुजकी विधवा - गंगास्वरूप - श्रीमती मणि बहिनके साथ वे अपनी छोटी बहिनकासा व्यवहार रखते थे । घरका सारा काम काज इन्हींकी सलाहसे करते थे । इन्हें नियमित रूपसे धार्मिक शिक्षा
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