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(२३२) क्या था ? यह कि इन्होंने श्वेतांबर जैनविधिके अनुसार ब्याह किया था; धर्मके विरुद्ध जातिमें जो रूढि थी उसको इन्होंने छोड़ दिया था । ___दसा श्रीमालियोंमें वैष्णव भी हैं, स्थानकवासी भी हैं और श्वेतांबर भी हैं । वैष्णवोंका कार्य उचित कहा जा सकता है; क्योंकि उन्होंने अपने धर्मके विरुद्ध कार्य करनेवालेको जातिबाहिर किया था; स्थानकवासियोंकी कृति भी क्षम्य हो सकती है; क्यों कि उन्हें दोनोंमेसे एक भी विधिके साथ कोई संबंध नहीं था; परन्तु अफ्सोस तो उन लोगोंकी. कृति पर है कि, जिन्होंने श्वेतांबर होते हुए भी श्वेतांबर धर्मके अनुसार कार्य करनेवाले अपने भाईको, श्वेतांबर जैनविधिसे लग्न करनेका अपराध लगाकर संघ बाहिर कर दिया । ऐसे संघके मुखिया वास्तवमें श्वेतांबर धर्मके पालक हैं या नहीं इस बातका संदेह उत्पन्न हो जाता है। मुखियाओंकी यह कृति धर्मको लांछित करनेवाली और उनकी रूढि पनाका एक अनोखा उदाहरण है । ऐसे ही मुखियोंके कारण, धर्म अवहेलित और अपमानित होता है और धर्मविहित किन्तु रूढिके विरुद्ध कार्य करनेवालोंको संघ बाहिर करनेकी सजा देनेवाले, रूढिभक्त संघके नेताओंके कारण श्वेतांबरसंघकी नींव डगमगा उठी है और इसकी जनसंख्या बड़े वेगसे कम होती जा रही है । अस्तु ।
पाठक ! संघबाहिर और जातिच्युत होनेका आघात जबर्दस्त होता है । इसको वही समझ सकता है जिसको कभी इसका अनुभव हुआ है । धननाशका, और मनुप्यके मरणका आघात सहना कठिन है; मगर इस आघातको अकेले खड़े हो कर सहना विरले ही वीर पुरुषोंका काम है । सेठ हेमचंद्र ऐसे ही वीर पुरुषों से एक थे।
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