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(२२०) - सं० १९७७ में राधनपुर की पिंजरापोलके निभाव फंडमें बीस हजार रु० का दान दिया । . राधनपुर और संखेश्वरजीके बीचमें एक जैनमंदिर बना, उसमें पाँच हजार रुपये दान दिये।
सं० १९८० के दुष्कालमें राधनपुके अंदर गरीबोंको सस्ता अनाज और अनाथोंको मुफ्तमें अनाज देने के लिये पाँच हजार रुपये दिये । इसके अलावा राधनपुरके आसपासके गरीब श्रावकोंको पाँच हजार रुपये नकद गुप्त रूपसे खुद बाँटकर आये । सात हजार रुपये उसी साल राधनपुरकी पिंजरापोलको दिये।
राधनपुरमें वर्द्धमान तपका खाता प्रारंभ कराके उसमें पाँच हजार रुपये दान दिये। ___ जैन कौमने इनकी कदर करके इन्हें जैनश्वेतांबर कॉन्फरेंसका सुजानगढ़में जो जल्सा हुआ था उसके सभापति चुने थे। बंबईके श्री गोडीजी पार्श्वनाथके मंदिरके मुख्य और शान्तिनाथजीके भी ये ट्रस्टी थे। ऐसी कोई धार्मिक संस्था न थी जिसके साथ इनका संबंध न हो।
जैसा इनका समाजमें मान था वैसा ही सरकारमें भी था। सरकारने इन्हें जे. पी. की पदवीसे विभूषित किया था । ___ सं. १९८१ के चौमासेके दिनोंमें जब मैं पंजाबके सज्जनोंसे इनके मकानपर मिलने गया था। इन्होंने मुझे न पहचानते हुए भी अच्छा सत्कार किया था। इनके हृदयमें धनाढ्यता या पदवीका कोई अभिमान नहीं था। दूसरी बार जब इनसे मिला तब करीब दो घंटे तक
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