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(२२१) ये मेरे साथ धार्मिक और सामाजिक चर्चा करते रहे । अपने जीवनकी भी कई घटनाएँ इन्होंने सुनाई । मैंने जब इन्हें राजपूतानके मंदिरोंकी अव्यवस्थाकी चर्चा की तब उन्होंने कहा थाः-" हमनेगोड़ी जीके टूस्टियोंने इसका विचार किया है । कुछ कार्य भी हमने प्रारंभ कर दिया है। आदि।"
ये यावज्जीवन ब्रह्मचारी तो रहे ही थे साथ ही इन्होंने अनेक तपस्याएँ भी की थीं। इन्होंने आठ आठ दस दस दिनके व्रत किये थे । एक बार तो सोलह दिनके व्रत किये थे। सं० १९७१ में जब पं० जी महाराज श्रीललितविजयजी गणीका चौमासा बंबई गौडीजीके उपाश्रयमें था तब इन्होंने लगतार २८ दिनके आम्बिल किये थे। देवदर्शनके विना ये कभी अन्नोदक ग्रहण नहीं करते थे। प्रायः पूजा और सामायिक, प्रतिक्रमण भी सदा किया करते थे।
पन्यासजी महाराज श्री ललितविजयजी पंन्यासजी महाराज श्री उमंगविजयजी आदि जब सं० १९८१ में बंबई आये थे तब वालेपारलेमें प्रातःस्मरणीय आचार्य महाराज १००८ श्रीविजयानंद सरि जीकी जयन्तीके ऊपर इन्होंने जो हार्दिक भावना व्यक्त की थी वह यहाँ दी जाती है।- ..
"बड़ोदेसे गुरु महाराजको ( वल्लभविजयजी महाराजको) लाये । महावीर जन विद्यालय स्थापन कराया । सूरतसे फिर गुरु महाराजने पं० ललितविजयीको भेजा और विद्यालयकी नींव पक्की हुई। अब फिर कृपालुने कृपा करके तेरह चौदह सौ. माइल पर बैठे हुए भी वहाँसे. पं० ललितविजवजी
होमहावीर जनयीको भेजा आर
चौदह
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