Book Title: Adarsha Jivan Vijay Vallabhsuriji
Author(s): Krushnalal Varma
Publisher: Granthbhandar Mumbai

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Page 807
________________ ( २२४) घंटेभर बाद उसने फिर कहाः- बाबा ! अब चलो दर्वाजा खुल गया होगा।" मगर उस बार भी वापिस लौटना पड़ा । तसिरी बार करीब साढ़े पांच बजे बाद जब मंदिरजीके दर्वाजे खुले तब बालकने अपने बाबाके साथ जाकर दर्शन किये । उस समय उनको जो खुशी हुई वह बयान नहीं की जा सकती । बालकका धर्म पर इतना प्रेम होना उन्हींकी धर्मपरायणताका प्रभाव था। ___ मंदिर बनवानेके काममें उन्हें बड़ी दिलचस्पी थी। सामाना, रोपड और अम्बालेके मंदिर प्राय: उन्हींकी देखरेखमें हुए थे। दुकानका कामकाज अपने लड़केके भरोसे छोड़कर इन्होंने उपर्युक्त मंदिर बनवानेमें अपना समय लगाया था । मुल्तानका मंदिर भी तैयार होते समय वे कई बार जाकर देख आये थे । मुल्तानकी प्रतिष्ठाके मौकेपर तो इन्होंने बहुत ज्यादा सहायता की थी। इस लिए कृतज्ञता दिखानेके लिए मुल्तानके श्रीसंघने एक स्वर्णपदक इन्हें भेटमें दिया था। अंबालेमें कोई उपाश्रय नहीं था। इन्होंने उपाश्रयके लिए अपना एक मकान दे दिया। अंबालेमें जब प्रतिष्ठा हुई तब इन्होंने चार दुकानें और एक तबेला मंदिरजीके भेट कर दिया। अंबालेके मंदिर जीका प्रबंध मुख्यतया सब इन्हींके हाथमें था। हस्तिनापुर तीर्थक्षेत्र कमेटीके ये सभापति थे । धार्मिक कार्योंमें ये जहाँ बुलाये जाते थे वहीं तत्काल ही पहुँच जाते थे। पजाबसे सं० १९८१ में पंन्यासजी महाराज श्रीललितविजयजी जब बंबई आने लगे और जब उन्होंने अंबालेमें प्रवेश किया तब Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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