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भाषा सुभाषण विधौ गुरुरेवनान्यः । इत्थंजना प्रतिजनन्निगदन्ति शश्वत् ॥ १० ॥ यतीन्द्र सम्प्राप्त गुणस्य वैभवनके समर्थाः कथितुं गुरूं विना । पिपीलीकाऽपीच्छति लङघितुं नगं तथैव वाचा गदितं मयाधुना ॥ ११ ॥
सर्वशास्त्रगरिष्ठस्यकुमारान्त शिवम्थच
शिष्यः
कृष्णपुराख्येs
हम अर्पयामिसतांमुदे । ११ ।
विद्यारत्नालङ्कारपदवीकेन द्वारकाप्रसादशर्मणाङ्कृतिरियम् ।
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|| श्री वीतरागायनमः
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विद्या धर्मेण शोभते
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श्री वर्द्धमान ज्ञानमन्दिर उदयपुर की अपील | जैन समाज की सेवामें ।
प्रधान संस्थापक शासन प्रभावक श्रीमद् जैनाचार्य विजय वल्लभसूरिजी महाराज [ स्थापित सम्बत् १९७७ विक्रम ]
महानुभावो
इस दिव्य भूमि' मेवाड ' का जिसमें उक्त संस्था स्थापित हैपरिचय देना अनावश्यक है, क्योंकि इसका केवल शुभ नाम ही इसके लिये पर्याप्त है । जैन संसारमें इस वीर भूमि का क्या स्थान है ? वह इतिहास के प्रेमियोंसे छिपा नहीं है ।
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यह वही पवित्र भूमि है, जिसमें आज भी परम पवित्र जगदाधार जगतवत्सल प्रथम तीर्थकर देव 'श्री केसरीयाजी' महाराज विराजमान हैं ।
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