SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 763
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( १८४ ) भाषा सुभाषण विधौ गुरुरेवनान्यः । इत्थंजना प्रतिजनन्निगदन्ति शश्वत् ॥ १० ॥ यतीन्द्र सम्प्राप्त गुणस्य वैभवनके समर्थाः कथितुं गुरूं विना । पिपीलीकाऽपीच्छति लङघितुं नगं तथैव वाचा गदितं मयाधुना ॥ ११ ॥ सर्वशास्त्रगरिष्ठस्यकुमारान्त शिवम्थच शिष्यः कृष्णपुराख्येs हम अर्पयामिसतांमुदे । ११ । विद्यारत्नालङ्कारपदवीकेन द्वारकाप्रसादशर्मणाङ्कृतिरियम् । ( ६ ) || श्री वीतरागायनमः 66 विद्या धर्मेण शोभते "" श्री वर्द्धमान ज्ञानमन्दिर उदयपुर की अपील | जैन समाज की सेवामें । प्रधान संस्थापक शासन प्रभावक श्रीमद् जैनाचार्य विजय वल्लभसूरिजी महाराज [ स्थापित सम्बत् १९७७ विक्रम ] महानुभावो इस दिव्य भूमि' मेवाड ' का जिसमें उक्त संस्था स्थापित हैपरिचय देना अनावश्यक है, क्योंकि इसका केवल शुभ नाम ही इसके लिये पर्याप्त है । जैन संसारमें इस वीर भूमि का क्या स्थान है ? वह इतिहास के प्रेमियोंसे छिपा नहीं है । Jain Education International यह वही पवित्र भूमि है, जिसमें आज भी परम पवित्र जगदाधार जगतवत्सल प्रथम तीर्थकर देव 'श्री केसरीयाजी' महाराज विराजमान हैं । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002671
Book TitleAdarsha Jivan Vijay Vallabhsuriji
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranthbhandar Mumbai
Publication Year
Total Pages828
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy