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__ यह वही धर्म एवं कर्मभूमि है जिसमें शिरोमाण तप गच्छीय शाखा का प्रादुर्भाव हुआ था। __ यह वही रत्नप्रसविनी भूमि है, जिसने स्वनाम धन्य भामाशाह जैसे दानशीर एवं स्वदेशीप्रेमी, तोलाशाह कर्माशाह जैसे धार्मिक नर-रत्नों को जन्म दिया । अस्तु एक दिन वह था कि जैन जाति सामाजिक, राजनैतिक एवं धार्मिक उन्नति के शिखर पर पहुँची हुई थी। आज दिनों दिन उसका हास देख कर कौन ऐसा जैन होगा जिसको इस पर शोक न होता हो, किन्तु सज्जनो, शोक केवल प्रदर्शित करनेसे काम नहीं चलेगा । समय कार्य करनेका है। सब जातियाँ उन्नति की ओर बढ़ रही हैं। हम दिनों दिन पिछडे जा रहे हैं।
हमारी अवनति का मूल कारण, समाजमें चारों ओर अविद्याका साम्राज्य होना तथा जैन सिद्धान्तों की अनभिज्ञताका होना है। जिस जैन धर्मने सारे संसारको, कल्याणका मार्ग बतलाया, सुख और शान्ति का पाठ पढाया, उसी धर्म के अनुयायी, अविद्या एवं धार्मिक सिद्धान्तों की अनभिज्ञता के कारण दिनों दिन दुखी हो रहे हैं। ___ अविद्याको मिटानेके लिये और जनतामें विद्या फैलाने के लिये कई प्रकारके साधन हैं । उपदेश देना, पुस्तकालयों पाठशालाओं और वाचनालयों आदिका खोलना भी आधुनिक समयमें शिक्षाप्रचार के मुख्य साधन हैं। इस देशकी राजधानी उदयपुर जैसी विशाल नगरीमें-जो ' श्री केसरीयाजी महाराजके विराजमान होनेके कारण समस्त जैन बन्धुओंका प्रधान स्थान ( अड्डा ) है-जैन संसारके हितार्थ एक वृहत जैन संस्थाकी बहुत कालसे आवश्यकता थी; जिससे स्थानीय एवं समस्त जैन बन्धु तथा जैनेतर, यथावकाश ज्ञानकी
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