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वृद्धि कर सकें तथा धार्मिक सिद्धातोंका मनन कर अपने जीवनका लाभ उठा सकें।
इस अभाव की पूर्ति के लिये स्थानीय यति वर्य श्रीअनूपचन्द्रनी महाराजके अविरल उद्योगसे सम्वत् १९७७ वि० में श्री वर्द्धमान ज्ञानमन्दिर' नामक संस्था स्थापित हुई।
इस संस्थाका उद्घाटन, परम पवित्र वीर परमात्माके अनन्य भक्त अतुल पुरुषार्थी, जैन मुनि-शिरोमणि, शान्त, दान्त, धीर, वीर श्रीमद् जैनाचार्य श्रीविजयवल्लभ सूरिजी महाराजके पवित्र करकमलोंसे हुआ है।
इस संस्थाने, धार्मिक ज्ञान प्रचार के लिए तथा जनतामें सेवाभाव जागृत करने के उद्देश से शीघ्र ही ' (१) श्रीवर्द्धमान-ज्ञान-मंदिर ( पुस्तकालय ) ( २ ) श्रीवर्द्धमान पाठशाला ( ३) श्रीवर्द्धमान औषधालय, नामक तनि उपयोगी संस्थाएँ स्थापित कर दी हैं ।
श्रीवर्द्धमान ज्ञानमन्दिर ( पुस्तकालय) का उद्घाटन भी उपरोक्त श्रीमद् जैनाचार्य के करकमलोंसे ही हुआ है।
इस समय पुस्तकालय में करीब ३००० पुस्तकें हैं, जिनमें करीब २५०० के बहु मूल्य जैन धार्मिक ग्रन्थ हैं । इससे लाभ उठाने वाले सज्जनोंकी संख्या वर्ष में कई हजार तक पहुँचती है । इस नगरमें अपने ढंग का यह एक ही पुस्तकालय है । यह शहर जैन जातिका केन्द्र होनेके कारण तथा श्री केसरीयाजी महाराजकी यात्राके निमित्त, प्रति वर्ष कई मुनिराज अपने शिष्य-वर्ग सहित पधारते रहते हैं, उनके लिये तथा श्रावक वर्ग के लिए यही एक मात्र पुस्तकालय है, जिसको अभी तक तीनों समुदायोंके जैन मुनिराजोंकी सेवा करनेका सौभाग्य प्राप्त हो रहा है। तथा इसकी सेवासे
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