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________________ ( १८७ ) उनको समयपर आवश्यक ग्रंथ मिल जानेसे बड़ा ही सन्तोष रहता है । आशा है कि ऐसे लोकोपकारी पुस्तकालयको सभी, उन्नतिको चरम सीमापर पहुँचा हुआ देखना चाहेगें । श्रीवर्द्धमान ज्ञानपाठशाला एवं औषधालय का काम भी सुचारू रूपसे चल रहा है I " 'सर्वेगुणाः काञ्चनमाश्रयन्ति' के अनुसार, भविष्य तथा वर्तमान समय में, भी द्रव्यकी सहायता के बिना इस संस्थाका उन्नतिकी ओर अग्रसर होना कठिन मालूम होता है । इसको अच्छे रूपमें चलाने के लिए कई हजार रुपयोंकी आवश्यकता है । आज कल बिना आर्थिक सहायताके संस्थाओंका चलना कठिन ही नहीं; किन्तु असंभव है । पुस्तकालय के लिए भी जैसा साहित्य चाहिए, वैसा, अर्थाभाव के कारण, संग्रह नहीं हो सका । अन्य दोनों संस्थाओंकी भी वही दशा है t I ऐसी सार्वजनिक संस्थाओंका जीवन आप ही लोगोंके हाथ है । जैन जाति सदासे दानशीलता के लिए प्रसिद्ध है । जीवनमें ऐसे अनेक प्रसंग आते हैं जिनमें लाखों रुपये नातकी बातमें व्यर्थ कामोंमें खर्च किये जाते हैं । ऐसे शुभ कार्यके लिए आप लोगों से ऐसे शुभ धार्मिक अवसर " पर्युषण " पर इस लोकोपकारी संस्थाकी सहायता के लिए निवेदन किया जाता है; आशा है आप इस अवसर पर, इस शुभ कार्यमें, हाथ बँटाकर अवश्य ही अपनी उदारताका परिचय देगें । सहायता भेजने का पता:कसेकी ओल उदयपुर (मेवाड ) संवत् १९८२ भाद्रपद शुक्ला १ Jain Education International भवदीय-निवेदक श्रीसंघका दास मालूमसिंह दोसी. बी. एस. सी. ( बम्बई ) मंत्री - श्रीवर्द्धमान ज्ञानमन्दिर. For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002671
Book TitleAdarsha Jivan Vijay Vallabhsuriji
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranthbhandar Mumbai
Publication Year
Total Pages828
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size12 MB
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