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________________ ( १८८) (७) (चाल-मजा देते हैं क्या यार, तेरेबाल धुंधर वाले।) धन २ विजयवल्लभ सूरीराज डंका धरमबजानेवाले ॥ अंचली ॥ श्री गुर्जर देश मझार, बडोदा कुलश्री श्री माल। र इच्छा श्री दीपचंद गुणधाम-की इच्छा पूर्ण करनेवाले ॥ १ ॥ध० ॥ लघुवयमां सत संगसार श्री विजयानंद सूरीराज । धर लीनो मनवैराग भवदधिपार उतरनेवाले ॥२॥३०॥ गुरुसंघ विनयको धार- इच्छा सम वर्ते सार । किया जगमें अति उपकार विद्या प्रेम बढ़ाने वाले ॥ ३॥१०॥ विजयानंद सुरीश्वर बाग- था फूला हुवा गुलनार । सींचे गुरूजल पंजाब आदिपे प्रेम धराने वाले ॥४॥ध०॥ वनिताश्रम शिक्षणसार- विद्यालयका नहि पार। औषधालय और दुष्काल केलवणी फंड खुलानेवाले॥५.१०॥ पूजा निन्यानवेसार ऋषीराज लोककी धार । अष्टापद एकवी प्रकार नंदीश्वरके गुणगाने वाले ॥६॥ध०॥ आदि पारस महावीर परमेष्टी सब जगहीर। तारक तीरथ मन धीर- की रचनाकरके बतानेवाले।।७॥ध०॥ व्रत द्वादश श्राद्ध विचार- रचे रत्न त्रयी सुखकार । स्तवनादिका नहीं पार के रस्ता सरल दिखानेवाले।॥ध०॥ तब संघने किया विचार गुरुगुण मुक्ताफल माल । पद योग्य सूरी निर्धार आतम रूप बतानेवाले ॥९॥१०॥ इन्दु सर युगकर साल चंद्र मगसर पंचमी श्रीकार । साडे सात बजे शुभकार सूरीपद संघ समर्पणवाले॥१०॥३०॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002671
Book TitleAdarsha Jivan Vijay Vallabhsuriji
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranthbhandar Mumbai
Publication Year
Total Pages828
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size12 MB
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