________________
गृहस्थसे उठवाकर चलते हैं, कपड़े गृहस्थसे धुलवाते हैं, और केशढुंचन ( रोगादि कारणके अतिरिक्त ) भी बहुतसे साधु छोड़ बैठे हैं; तथा कितनेक साधु गुरु आदि वृद्ध पुरुषोंसे, गुप्त पत्रव्यवहार करते हैं इत्यादिक कितनीक बातें ऐसी हैं जिनके लिये कुछ बंदोबस्त न किया जाय तो उनसे किसी समय हानिकारक परिणाम आनेका संभव है।
कितनेक साधु देशकालका विचार किये विना शिष्य परिवार बढ़ानेके लालच में फँस कर ऐसे ऐसे कार्य करते हैं, जिससे कि धर्मकी और कौमकी न सही जाय, ऐसी बदनक्षीबदनामी जैनेतर लोग करते हैं, और इस पवित्र धर्मकी तरफ घृणित विचार प्रगट करते हैं।
इस बातके लिये भी अपनेको कोई ऐसा प्रबंध करनेकी जरूरत है, जिससे कि धर्मकी अवहेलनारूप घोर कलंक अपने सिरपर न आवे !
यह जमाना खंडन मंडन या कठोर भाषाके व्यवहार करनेका नहीं है। किंतु शांततापूर्वक अर्हन् परमात्माके कहे सच्चे तत्वों को समझा कर प्रचार करनेका है। वर्तमान समयमें प्रचलित राज्य भाषा जो कि, इंग्लिश है उसका ज्ञान भी साधु
ओंमें होनेकी जरूरत है। कितनेक साधुओंकी इतनी संकुचित्त वृत्ति है कि, उपाश्रयके बाहर क्या हो रहा है ? इसकाभी पता नहीं है ! यही कारण है, जो जैन जातिकी संख्या
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org