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प्रस्ताव उन्नीसवाँ । आजकल प्रायः कितनेक सामान्य साधु भी ऊंची जातके और बहु मूल्यके धुस्से वगैरह कपड़े रखते नजर आते हैं। इस रिवाजको यह सम्मेलन नापसंद करता है और प्रस्ताव करता है कि, अपने साधुओंको आजपीछे पंजाबी या बीकानेरी कंबल अथवा वैसा ही और प्रकारका कम कीमतका कंबल काममें लाना चाहिये।
नंबर १७-१८ और १९ ये तीन प्रस्ताव भी सभापतिजीकी तर्फसे बतौर आज्ञाके सूचन किये गये थे। निनको सर्व मुनिमंडलने खुशीके साथ स्वीकार करलिया।
प्रस्ताव बीसवाँ। जिसको दीक्षा देनी हो उसकी कमसे कम एक महीनेतक यथाशक्ति परीक्षा कर उसके संबंधी माता, पिता, भाई, स्त्री आदिको रजिष्टरी पत्र देकर सूचना कर देनी और दीक्षा लेनेवालेसे भी उसके संबंधियोंको जिस वक्त वो अपने पास आवे उसी समय खबर करवा देनेका ख्याल रखना।
यह प्रस्ताव प्रवर्तकनी श्रीकांतिविजयजी महाराजने पेश करते हुए कहा था कि, प्रायः अपने साधुओंमें आज तक दीक्षा संबंधी कोई खटपट या झगड़ा ऐसा नहीं उठा है जिससे हमें
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