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नोटिस तथा एक पत्र मिला, जिसका आशय यह था,-" आज सायंकालके ६ बजे ब्रह्म अखाड़े में सभा होगी, हमारे पं० भीमसेननी शास्त्रार्थ करनेकेलिये तैयार हैं। आत्मानन्दी पुजेरे भी अपने पण्डितको लावें । यदि आत्मानन्दी नहीं आयेंगे तो पं० भीमसेनजीका व्याख्यान होकर सभाका कार्य समाप्त किया जायगा तथा जैनोंका' पराजित होना प्रसिद्ध कर दिया जायगा"
इस नोटीसको पाकर जैनलोगोंको बड़ा आश्चर्य हुआ कि न तो कोई मध्यस्थ, न पुलिसका प्रबन्ध । फिर भी घंटेकी फुरसत ( अवकाश) देकर शास्त्रार्थके लिये बुलाना, सभास्थान भी ब्राह्मणोंका, सभापति भी उन्हींके पक्षपाती पं० लालशङ्करजी, मानों यह एक गुड़ियोंका खेल ही इन लोगोंने समझ लिया ! पाठकगण, सच्ची बात तो यह है कि वेदमें हिंसा है यह बात दुनियामें जाहिर है। बंबई शहरकी धर्मसभाने २६ प्रश्न निकाले थे । जिनमेंसे आठवें और ग्यारहवें प्रश्नका जवाब तारीख ३० जुलाई सन् १९०४ के — बंबई समाचार ' में छपा है, जिसमें खुलासा वेदमें हिंसा लिखी है ! परन्तु सनातन धर्मावलंबियोंने तथा उनके पं० भीमसेन शर्माने जोशमें आकर तथा पक्षपातका चश्मा चढाकर विचार किया कि ब्राह्मण क्षत्रियादि हजारों मनुष्य हमारे पक्षमें हैं। जैनी कुल थोड़ी संख्यामें, फिर भी ये जैनी हमारे सन्मुख बोलते हैं ? इस लिये इन्हें शास्त्रार्थमें चालबाजीसे अथवा लड़ाई दंगेसे दबाना और प्रसिद्ध कर देना कि जैनी हार गये। पर जैन लोग उनका अन्तःकरण अच्छी तरहसे जानते थे अतएव थानेदार तथा पुलिस को साथमें लेकर जैन पं. व्रजलालजीको सभामें ले गये।
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