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(१५६) प्रसंगवश मुझे कहना पड़ता है, थोड़े दिन पहले रतलामके एक श्रावकका पत्र मुझे मिला है, उसमें लिखा है कि, यहाँ एक ब्रह्मचारी आये हुए हैं। उन्होंने ब्रह्मसूत्र पर 'वेदमुनि कृत ब्रह्मभाष्य ' नामा भाष्य रचा है, जो निर्णय सागर प्रेसमें छपकर तैयार हो गया है । उसमें सप्तभंगी, स्याद्वाद, नवतत्व आदिका खंडन किया गया है और स्याद्वाद पर अडतालीस दोष लगाये गये हैं। उसका योग्य उत्तर देनेकी आवश्यकता है । यद्यपि, चाहे जैसा, उत्तर तो दिया जायगा; भगवानका शासन जयवंत है, कोई न कोई उत्तर जरूर देगा तथापि इसका योग्य उत्तर योग्य भाषामें वर्तमान आचार्यों से अथवा पन्यासों से कोई दे तो वह विशेष महत्व का हो । इस बातको सभी जानते हैं कि एक सामान्य व्यक्तिकी अपेक्षा किसी प्रतिष्ठित पदवीधरकी रचना विशेष प्रतिष्ठित होती है।
सज्जनो ! अब मैं मरहमकी गंभीरताका कुछ परिचय कराऊँगा । हमें गंभीरताकी खास जरूरत है । मैं जानता हूँ कि समय बहुत ज्यादा हो चुका है। लोग ऊँचे नीचे होने लग रहे हैं । बार बार जेबोंमेंसे घड़ियाँ निकालकर देखी जा रही हैं । मगर इन घड़ियोंकी अपेक्षा अपने जीवनकी घड़ी देखोगे तो मालूम होगा कि, कितना समय हो गया है और कितना बाकी है। भाग्योदयसे यह शुभ प्रसंग हाथ आया है। इसे स्थिर चित्तसे सफल कर लेना चाहिए । जैसे सांसारिक कार्योंकी चिन्ता रहती है वैसे ही बल्के उससे भी अधिक धार्मिक कार्योंकी चिन्ता रखनी चाहिए । जब तम
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