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(१६२) त्माको कठोर शब्द कहे । अब क्या हो सकता है ? जो भाषा वर्गणा नकल गइ वह निकल ही गई। ___ आचार्यश्रीने पूछा:-" तुम कैसे कहते हो कि हम भी मांसाहारसे नहीं बच सकते हैं ? "
ईसाईः-तुम दूध पीते हो या नहीं ? आचा०-पीते हैं। ई०-तो बस, दूध मांस और खूनसे ही बनता है । जब मास और खूनसे बना हुआ दूध पी लिया तो फिर बाकी रहा ही क्या ? मांस नहीं खाना और दूध पीना यह कहाँका न्याय है ?. .. ____ आ०-बेशक, दूधकी पैदाइश इसी तरह होती है। इसी लिए जैनमानते हैं कि व्याई हुई भैंसका पन्द्रह रोज, गायका दस दिन और भेड बकरी वगैरहका दूध आठ दिनतक नहीं पीना चाहिए। कारण उसके दूध रूपमें परिणमन होनेमें कसर रहती है । जब वह दूधके रूपमें परिणमन हो जाता है। तब जुदा ही पदार्थ बन जाता है। इस लिए इसमें कोई हानि नहीं समझी जाती है। यह कोई दलील नहीं है कि जिससे पदार्थ बनता है उसको भी पदार्थका खानेवाला जरूर खावे । अन्नके खेतसे गंदी चीजें डाली जाती हैं; ईख, खरबूजा वगैरहकी पैदाइश गंदगीकी खादसे ही होती है, तो कोई यह कहेगा कि अन्न खरबूजा आदि पदार्थोंको खानेवाला गंदगी भी जरूर खाय ? गंदगी खाकर पुष्ट बने हुए सूअरका मांस खानेवाला इंसाई क्या गंदगी भी खायगा ? सुनो, तुमने जिस तरहका सवाल किया है उसी तरहका जवाब भी तुम्हें मिलेगा । अगर
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