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जो विशेष सुशोभित होता है वह 'वीर' है। जो वस्त्राभूषणोंसे सुशोभित होता उसे वीर नहीं कहते, जो आत्मिक गुणोंसे सुशोभिंत होता है उसे वीर कहते हैं। जिनमें जरासा भी दोष न हो, जो निर्दोष हों, और देदीप्यवान हों ऐसे गुणोंवाले सभी ‘वीर हैं।
शत्रुओंका नाश करनेसे, कर्मोंका नाश करनेसे भी वीर कहलाते हैं। इस तरह वीर शब्दके अनेक अर्थ होते हैं। उपर्युक्त गुण उनमें थे। हमें भी अपनेमें उन गुणोंको उत्पन्न करना चाहिए। वीर, वीर कहनेसे हमारी भलाई न होगी । जगतमें कर्मवीर, दान वीर, शूरवीर, योगवीर आदि अनेक प्रकारके वीर कहलाते हैं। भगवान महावीर दानवीरं थे। वे क्षत्रिय कुलमें उत्पन्न हुए थे । दान करनेका गुण क्षत्रियोंहीमें होता है । राज्यमें ब्राह्मण भले राज्यगुरु कहलानेका दावा करते हों; मगर उनमें दान गुण नहीं होता उनमें तो शिक्षा और भिक्षावृत्तिका ही गुण होता है । वैश्योंमें लोभवृत्ति होती है इस लिए वे भी वास्तविक दान नहीं कर सकते हैं। भगवंतने किसी तरहका भेद भाव न रख जगतके सभी लोगोंको दान दिया था। उन्होंने एक वर्षमें तीन अरब, अठासी करोड, अस्सी लाख सोनये (उस समय चलता सोनेका सिक्का) दानमें दिये थे। ऐसे अवतारी पुरुष ब्राह्मणों या वैश्योंमें उत्पन्न नहीं हो
सकते हैं। - भगवानने दान देते समय, धर्मी या अधर्मी, गुणी अथवा निर्गुणी, गरीब अथवा अमीर, इस तरहका कोई भेद न रख सभी को, अनु
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