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परिशिष्ट [क] [ इसमें आपके लिए लोगोंने जो प्रशंसाके उद्गार
· निकाले वे दिये गये हैं।]
आवोजी वल्लभविजय ऋषिराया। मार्ग जैन दर्शाया ॥ वल्लभ जिनमत वल्लभ स्वामी । वल्लभजननी जाया ॥ कालभ चारित्र कंठ सरस्वती । वल्लभ नाम धराया ॥ १ ॥ पंडितराज धर्म उपकारी । परम धालु सुखदाया ॥ सर्व जीवों पर करुणासागर । जैन जहाज चलाया ॥ २ ॥ स्वामी गुरु तीर्थ अभिलाषी । धर्म समाज टिकाया ॥ पोसे बिन तेरे कौन स्वामी । बूटा आत्म लगाया ॥ ३ ॥ हो सुनी वीर वचन परकाशी । अर्पण कीनी काया ॥ अर्थी अर्थ बचाये अपना । निगुर्णी गुण नहीं गाया ॥ ४ ॥ मन चाहे चिन्तामणि पाऊँ । कल्पवृक्षकी छाया । पुण्यवानसे मिले सहेली । बिन पुण्य पाये गँवाया ॥ ५ ॥ लाख करोड़ी तेरी आन माने । छड्डन न तेरा पाया ॥ हम गरीब तेरी किस गिनतीमें । जो इतना चिर लाया ॥ ६ ॥ सिंह मार्गमें निराधार चाले । आप तो निरपरवाया ॥ हम परवाई दर्शनके प्यासे । क्यों कर मुझे भुलाया ॥७॥ तुम तो,मेघ सम हम शिष्य मूर्ख । गुरुसम धन वर्षाया। मन मेरा मीन बाज जल तड़फत । मृग प्यासा जलचाया॥ ८ ॥
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