Book Title: Adarsha Jivan Vijay Vallabhsuriji
Author(s): Krushnalal Varma
Publisher: Granthbhandar Mumbai

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Page 754
________________ वन्देवीरम् । धण्णा ते जीयलोए गुरवोणिवसंति धण्णा ण विसो धण्णो जस्स हिययंमि ॥ गुरुण हियए वसइ जोउ ॥१॥ खामेमिसव्व जीवेमित्ती मे सव्वभूएस -सव्वे जीवा खमंतु मे॥ वेर मज्झंण केणइ ॥१॥ क नफर अ ___विद्या संध्यो दयोद्रेका-दविद्यारजनीक्षये ॥ आत आ नमस्तस्मा कस्म चित्परमात्मन ॥१॥ त त the tect FEnt 可訂江衍市可订立 444AAD 324A roFFFER 阳两对肝病讨 464644 4 | ALA 부 전에 부부의 편 Faster वेक शीर्षे मुकुटस्वभा स्वान्तभूगर्वविनाशम श्वाव्रताली महिमप्रभा दीमुखी तो हदिनो व्यभा भि म्मेनहीनो भजतेसना पीडितांगोपिसमोक्षजा खनभवन्तं लभते सुशै वि | म | ले लो के स | व | दा [मः न मो भांजनानां जयतात्प्रमो सकल शास्त्र पटिष्ट मुनिश्वर । व्रजवरिष्ट गरिष्ट गुणैः शुभैः । विबुधनिष्पतिम्प्रतिभान्वित । हितविचारविलासनिकेतन ? मुनिपवल्लभतेचरणद्वयं । सततमाश्रयतानतिसंततिः । सुरभिपद्मसमूहमुपेत्यकिं । व्रजितुमन्यतइच्छतिषट्पदी ॥२॥ सम्यगाराधितपर्व, महत्पyषणाभिदं । यथाशक्तिसमाश्रित्य, देशकालादिकारणं ॥३॥ तत्राप्याराधितंसम्य-गभविष्यन्मुमुक्षणां । भवादृशां प्रभावाच, श्रीसंधैः हर्षपुरितैः ॥४॥ प्रतिक्रमणनामानं, साध्वाचारं चिरंतनं । वल्लभानन्ददंकृत्वा, विचक्षणजनप्रियं ॥ ५॥ सांवत्सरे पर्वणि सर्वमान्ये, प्रत्येक जोः क्षामितोपराधः । पूज्यैर्विमानैः क्षमते जनार्य, कृपांविधायक्षमणीय इश ॥ ६॥ (कलापकं) कृपावता भवतां कृपयात्र कुशलं तत्र त्यमपि तत्रभवतांकुशलं प्रेषणीयं Jain Education International For Prive १९७ersonal use Only- श्रीयुत sanelibrary.org

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