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( १७१)
उस समय भगवानने कहाः-हे इन्द्र ! दूसरोंकी ! सहायतासे कभी काँका नाश नहीं होता; दूसरोंकी सहायतासे कभी केवलज्ञान नहीं होता । किसी भी तीर्थकरने केवलज्ञान उत्पन्न करनेके लिए न किसीकी मदद ली है न भविष्यमें ही लेंगे। इससे भगवानने हमें स्वात्मावलंबी बननेका उपदेश दिया है। संसारमें कोई भी कार्य परावलंबनसे नहीं होता । भगवानमें संपूर्ण रूपसे स्वावलंबनका गुण था और अपनी आत्मिक ऋद्धि प्रकट करनेके लिए उन्होंने किसीकी सहायता नहीं ली थी। ___ योगवीरका अभिप्राय यह है कि, वे आलसी, प्रमादी या कायर न थे। वे कर्तव्य परायण थे इसी लिए वे योगवीर कहलाते हैं। इन गुणोंका आराधन करनेसे हम भी योगवीर हो सकते हैं। आत्मा ध्याता, ध्येय, ध्यान इन दोंमें पहुँचनेके लिए योग निमित्त है। बाहिरी उपाधियोंको सर्वथा मिटा कर यदि भगवान महावीरके इन गुणोंको अपने हृदयमें स्थापित न करेंगे तो ये गुण हमें कदापि प्राप्त न होंगे । प्रत्येकको निमित्तकी आवश्यकता है। प्रतिमा ध्यानका साधन है । इनकी प्रतिमाद्वारा यदि हम इनका ध्यान करें तो हममें योगके कुछ अंश आ सकते हैं । प्रतिमाके निमित्तसे गृहस्थोंको द्रव्य और भावसे तथा साधुओंको भावसे योगका साधन करना चाहिए । साधुओंको भाव पूजाका अधिकार है । भगवानने संसारका त्यागकर, अपना ज्ञान प्रकटा उपदेश दिया है कि, तीर्थकरोंके कल्याणकोंका आराधन करो। कल्याणकका अर्थ-कल्य माने सुख और अण माने बुलाना, अर्थात्
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