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( १७० ) कंपासे, दान दिया था। इससे वे हमें अनुकंपा दान देना सिखा गये हैं । जो गृहस्थ होकर अपनी शक्तिके अनुसार दान नहीं देता है वह वास्तवमें वीर पुत्र नहीं है। __वीरताका गुण शुद्ध क्षत्रियके बिना दूसरोंमें उत्पन्न नहीं हो सकता है । भगवान ध्यानवीर भी थे । ध्यान अर्थात् चपलताका अभाव । तुम्हारा हमारा चित्त जैसे चंचल और चपल है वैसे भगवानका नहीं था । ऐसी शक्ति प्रकट करके हम भी उनके समान हो सकते हैं। चपलताका दोष नाश करनेके लिए हम यदि अभ्यास करेंगे तो अवश्यमेव, कुछ अंशोंमें ध्यानमें आगे बड़ सकेंगे।
भगवान ज्ञानवीर भी थे। उन्होंने जगतके पदार्थोंको उनके यथार्थ रूपमें जाना था । संसारमें कोई ऐसा पदार्थ नहीं है जिससे प्रभु अज्ञात या अजान हों । जिनमें अजानपन हो वे ज्ञानवीर नहीं कहला सकते । भगवान महावीरने अज्ञानके सभी आवरणोंको खपा दिये थे, इसी लिए वे ज्ञानवीर कहलाते हैं। ___ कर्मवीर भगवंत आत्मिक गुणोंको प्रकट करनेमें कायर न थे । यह काम होगा या नहीं, ऐसी शंका उनको कभी नहीं होती थी। जिसके मनमें कार्य प्रारंभ करनेके पहले ही ऐसी शंका उत्पन्न होने लगती है कि, यह कार्य मुझसे पूरा होगा या नहीं ? वह काम कभी उससे पूरा नहीं होगा। जिस समय भगवान संसारको छोड़ दीक्षाग्रहण कर विचरण करने लगे, उस समय इन्द्रने आकर विनती की- " भगवान आपको बहुत कष्ट उत्पन्न होनेवाला है इस लिए यदि आप आज्ञा दें तो मैं आपकी मददके लिए यहीं रहूँ।"
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