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तुम्हारे कथनको तुम ठीक समझते हो और यह कहने की हिम्मत कर सकते हो कि, अन्नादि खानेवाला ईसाई गंदगी भी खाता है तो हमें भी तुम अपनी अकलके अनुसार जैसा मुनासिब समझो मान लो । हमारा इसमें कोई नुकसान नहीं है । हम तो यहीं मानते हैं कि, अन्नादि गंदगी नहीं है । गंदगी जुदा पदार्थ है और अन्न जुदा पदार्थ है । इसी तरह लोहू मांस जुदा पदार्थ हैं और दूध जुदा पदार्थ है । इस लिए यह कभी सिद्ध नहीं हो सकता है कि, दूध पीने वाला मांसाहारी है ।
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ईसा - महाराज ! आपने तो मुझे बड़े चक्करमें डाल दिया । इसका जवाब और क्या हो सकता है कि, या तो मांस खानेवाला गंदगी खानेवाला बने या मांस खाना छोड़ दे ।
आचा० -- ( उसे ठंडा देखकर ) अगर तुम्हारा यह पक्का विश्वास है कि, जिसका दूध पीना उसका मांस भी खाना चाहिए तो बच्चा माताका दूध पीता है इस लिए उसे माताका मांस भी, तुम्हारी मान्यता के अनुसार, खाना चाहिए ।
ईसाई- अरे तोबा ! तोबा ! महाराज आप साधु हो कर क्या कहते हैं ? माता बच्चेको पालती है। बच्चेका फर्ज है कि, वह जितनी हो सके उतनी माताकी सेवा करे । वह उपकार करनेवाली है । उपकार करनेवाले पर अपकार करना महानीचताका काम है ।
आचा० - वाह ! जब तुम इतना जानते हो तब जान बूझकर उल्टे रस्ते क्यों चलते हो ? हम साधु हैं इसी लिए तो तुम्हारी भलाई के लिए तुम्हे सच्ची बात कह रहे हैं । केवल बचपनहीमें दूध पिलाने
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