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महाशयो ! स्वर्गीय महात्मा कैसे ज्ञानवान थे, इस विषयमें कई वक्ता कह चुके हैं। उनके कथनसे तुम्हें उनके ज्ञानका अंदाजा हो गया है । मैं जो कुछ कहता हूँ उस पर ध्यान दोगे तो उनके ज्ञानके विषयमें पूर्णरूपसे जान सकोगे। __ श्री १०८ श्री बुद्धिविजयजी ( बूटेरायजी ) महाराजके पाँच शिष्य थे । श्री मुक्तिविजयजी ( मूलचंदजी ) महाराज, श्री वृद्धिविजयजी (वृद्धिचंदजी) महाराज श्रीनीतिविजयजी महाराज, श्रीखांतिविजयजी महाराज और पांचवें स्वर्गीय महाराज कि, जिनकी जयन्ती मनानेका आज हम लाभ उठा रहे हैं। पाँचवें महाराजकी अपेक्षा श्रीमूलचंदजी महाराज प्रायः गुजरातमें विशेष प्रसिद्ध हैं और श्रीवृद्धिचंद्रजी महाराजको काठियावाड़में लोग विशेष जानते हैं। श्रीनीतिविजयजी महाराज और श्रीखांतिविजयजी महाराजको भी काठियावाड़ी ही प्रायः जानते हैं। खांतिविजयजी महाराज काठियावाड़में कई स्थानोंमें दादा खांतिविजयजी तपस्वीके नामसे प्रसिद्ध हैं । मगर पाँचवें महात्मा तो गुजरात, काठियावाड़, कच्छ, मारवाड़, मालवा, मेवाड़, पंजाब आदि सारे हिन्दुस्थानमें प्रसिद्ध हैं। इतना ही नहीं विदेशोंमें-विलायतमें भी लोग उन्हें जानते हैं। .
इसका कारण क्या है ? इसका कारण यही है कि, इस सदीमें इनको जितना ज्ञान था उतना किसीको नहीं था । इस बातको सभी जानते हैं। जिनमें जितना पानी होता है उतनी ही उनकी दूर देशोंमें कीमत होती है । मोतीमें पानी होता है, इसी लिए उसकी कीमत होती है। जिसमें जितना पानी उतनी ही उसकी कीमत ।
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