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सके साथ कहना पड़ता है कि, हमें जिस सभ्यताको धारण करना चाहिए उस सभ्यताकी हमें जरासी भी खबर नहीं है। पाँच दस हजार आदमी जमा हों तो भी शान्तिसे सभी सुन सकें, हमें ऐसी शान्ति रखनी चाहिए उसकी जगह गड़बड़ करके न स्वयं सुनना न दूसरे को सुनने देना; क्या यह हमें शोभा देता है ? मैं जानता हूँ कि दुनियाका ढंग जुदा है ? 'सत्य मिरची झूठ गुड' झूठी बातें गुडके समान मीठी लगती हैं; परन्तु सच्चीबातें मिरचीके समान तीखी लगती हैं। सिरसे पैर तक झाल फूट उठती है। ___ हम जिन महात्माकी जयन्ती मनानेके लिए यहाँ एकत्रित हुए हैं उन महात्मामें इससे उल्टा गुण था । वे 'झूठ मिरची सत्य गुड' इस सिद्धान्तको माननेवाले थे। इसी लिए आज जैसे अमुक, अमुक सेठके गुरु और अमुक, अमुक सेठके गुरु कहलाते हैं वैसे ही वे अमुक सेठके गुरु नहीं कहलाते थे। कारण वे सेठियोंके कथनानुसार चलना पसंद नहीं करते थे; वे जानते थे कि उनकी गुरुता कैसे रह सकती है। वे सेठ ही क्या हरेक श्रावकको धर्मोपदेश द्वारा अपने हुक्ममें चला सकते थे । वे भली प्रकार समझते थे कि, साधु और श्रावकोंके आपसमें धर्मके सिवा दूसरा कोई संबंध नहीं है, इसी लिए उन्हें किसीकी परवाह रखनेकी आवश्यकता न थी । आज तो ऐसी दशा हो रही है कि सेठका कहना गुरुको मानना ही चाहिए; सेठ चाहे गुरुका कहना माने या न माने । इसका मतलब सेठ गुरु होता है या गुरु गुरु होता है सो तुम खुद सोच लेना । ( हास्य )
सज्जनो ! स्वर्गीय महात्मामें किस तरहकी बेपरवाही थी और
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