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कितना साहस था इस बातका मैं तुम्हें दिग्दर्शन कराऊँगा । 'पं० हंसराजजीने जिस अज्ञान तिमिर भास्करकी बात कही है, वह जब छपवानेके लिए प्रेसमें दिया जानेवाला था तब कई लोगोंने कहा:--" महाराज ! आप साधु हैं। आप कानून नहीं जानते । इसके छपनेसे ' मानहानि का केस दायर होनेकी संभावना है।" ___महाराजने फर्मायाः--" भाई हम साधु हैं । हम धन नहीं रखते इसी लिए तुम्हें पुस्तक छपानेके लिए सूचना देनी पड़ती है । तुम्हारे हितके लिए तुम धन खर्चा या न खर्चों यह तुम्हारी इच्छा है; अन्यथा इसमें मानहानि जैसी कोई बात नहीं है और यदि होगा तो उससे तुम्हें कोई हानि नहीं होगी । पुस्तक बनानेवाला में मौजूद हूँ। जिसको मानहानिका केस करना होगा वह मुझपर करेगा । तुम निश्चिन्त रहो; बेफिक्र रहो । अंग्रेज सरकारका राज्य है । जब ऐसे न्यायी राज्यमें भी हम अपने धर्मपर आक्रमण करनेवालोंको, शास्त्रानुसार जवाब दे, अपने धर्मकी रक्षा करनेके न्याय्य हकका उपयोग न किया जायगा तो कब किया जायगा ?" __ आहा ! कितनी धर्मकी लगन ! कैसी हिम्मत ! बेशक दुनियामें - साहसी मनुष्य कभी अपने निश्चित विचारोंको दूसरोंके कहनेसे, या भय दिखानेसे नहीं छोड़ता । वह तो उन्हें पूरा ही करता है। मैं तुम्हें गये बरस स्वर्गीय पूज्य महात्माका चरित्र सुना चुका हूँ उससे विशेष मैं कुछ न कहूँगा; मगर मैं इस बार यह बात विषद रूपसे बताऊँगा कि वे कैसे साहसी, ज्ञानवान, गंभीर, निरभिमानी, निर्भय और स्पष्टवक्ता थे ?
जवान तो कब का धर्मकी बात विचा
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