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(१५५) - अहमदाबादमें शान्तिसागरको जवाब देनेमें ये महात्मा ! तीन थुईवालोंको जवाब देनेके लिए ये महात्मा ! स्थानकवासियोंको, सम्यक्त्वसार नामक पुस्तकका उत्तर देनेके लिए ये महात्मा ! दयानंद सरस्वतीके, जैनधर्म पर किये गये आक्षेपोंका उत्तर देनेके लिए ये ही महात्मा ! और वैदिक धर्मवालोंको जवाब देनेके लिए भी ये ही महात्मा ! कितनी विद्वत्ता ! कितना प्रताप ! (धन्य ! धन्य ! की ध्वनि !) __ सज्जनो ! स्वर्गीय महाराजके ज्ञान गुणसे मुग्ध होकर ही, श्रीसंघने पालीतानेमें उन्हें, उनकी इच्छा न होते हुए भी, आचार्य पदवी दी थी। इस विषयमें भरूचके सेठ अनूपचंदनी अपनी पुस्तक प्रश्नोत्तर चिन्तामणिमें अच्छा प्रकाश डाल गये हैं । मुझे कहने दीजिए कि, उस जमानेमें बड़े भाग्यसे लोगोंको एक आचार्य मिले थे । प्रसन्नताकी बात है कि, भाग्यवश जैनोंमें आज पाँच छः आचार्य विद्यमान हैं। आचार्य श्रीविजयकमल सरि, आचार्य श्रीविजयनेमि सूरि, आचार्य श्रीभ्रातृचंद्र सूरि, शास्त्रविशारद श्रीविजयधर्म सूरि, शास्त्रविशारद, योग्यनिष्ठ श्रीबुद्धिसागरसूरि, शास्त्र विशारद श्रीकृपाचंद्र सूरि । स्वर्गीय एक ही आचार्य महाराजने अपने समयमें अनेक प्रकारसे जैनधर्मकी उन्नतिके कार्य कर जैनोंको उपकृत किया है। इसी तरह वर्तमानके आचार्य महाराज भी यथाशक्ति अपनेसे. हो सके उतने धर्मकी उन्नतिके कार्य कर लोगोंका उपकार करें तो धर्मकी इतनी उन्नति हो कि, जिसका अंदाजा नहीं किया जा. सकता है।
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