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(१२८) कार्य प्रारम्भ हुआ। जजसाहबने सनातनी भाइयोंसे पूछा कि, अज्ञान तिमिर भास्करको छपे कितने दिन हुए ? उत्तरमें कहा गया, इक्कीस वर्ष । फिर जज्जसाहबने पूछा कि, इतने दिनतक क्यों तकरार नहीं उठाई गई ? उन्होंने कहा, अभीतक किताब देखनेमें नहीं आई थी। अनन्तर एक जैन भाईने कहा कि यह बात गलत है, क्योंकि पं० भीमसेनजीने कहा था,-"एक वार मैं इस किताबका खण्डन कर चुका हूँ।" __ फिर सनातनी भाइयोंकी प्रार्थनानुसार जजसाहेबने कहा,-" कलः पाँच प्रश्न जैनियोंको दिये थे वे लावें ।" __ जैनियोंकी ओरसे लिखित प्रश्नोंके उत्तरकी कॉपी जजसाहबके सन्मुख रक्खी गई और कहा गया कि, हम लोगोंने सनातानयोंको जो प्रश्न दिये थे उनका उत्तर चाहते हैं। " जज साहबके माँगनेपर पं० भीमसेनजी बोले कि, प्रथम हमारे प्रश्नका जबाब दिया जाय पीछे इनके प्रश्नका जवाव दूंगा; क्यों कि प्रथम हमारी ओरसे प्रश्न किये गये थे। । उसी समय जैनियोंकी तरफसे रजिस्टर पत्र दिखलाकर कहा गया कि, प्रथम हमारी ओरसे ही प्रश्न किया गया था । तपास करनेपर यही बात सच्ची निकली। तदनन्तर जज साहबने जैन पं० ब्रजलालजीसे कहा कि, आप अपने प्रश्न सुना देवें, पश्चात् प्रश्न सुन कर, उन्होंने पण्डित भीमसेनजीसे पूछा कि,—“ मन्त्रब्राह्मणयोर्वेदनामधेयम् " इस महर्षिके सूत्रानुसार ब्राह्मण ग्रन्थको वेदत्व प्राप्त है, अतएव मैं आपसे पूछता हूँ कि, ब्राह्मण ग्रन्थ वेद हैं वा नहीं ? . .
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