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(१२९) पाठको ! यहाँ यह लिखना आवश्यक है कि, सनातन धर्मावलंबीमात्र ब्राह्मण ग्रन्थोंको वेद मानते हैं और उन्हींमें गोमेध तथा नरमेध बड़े विस्तारसे लिखा है। अतएव पं० भीमसेनजीने बड़ी चालाकीसे उत्तर दियाथा कि, “ मूल वेदमेंसे गोमेध तथा नरमेध दिखलाओ, " इससे उपर लिखा पूछा गया था।
पं० भीमसेनजीने कहा,-" ब्राह्मण ग्रंथोंको वेद मानता हूँ परन्तु मैं जैनी पण्डितसे पूछता हूँ कि, वे मूल वेदमेंसे गोमेध तथा नरमेध दिखलावें।
जज साहब पं० भीमसेनजीसे बोले,-"मन्त्रब्राह्मणयोर्वेदनामधेयम्" इस वचनसे ब्राह्मण ग्रन्थोंको वेदत्व प्राप्त है, उसे आप स्वीकार भी करते हैं। बस अब आपको जैन पं० व्रजलालजी अपनी इच्छानुसार संहिता अथवा ब्राह्मणभागसे नरमेध तथा गोमेध दिखलावेंगे। यह आपका आग्रह करना कि, मूलमेंसे ही दिखलावें, अनुचित है। __पं० भीमसेनजीने कहा,-" ब्राह्मण ग्रंथ, मूल वेदका व्याख्यान हैं, अतएव मूलका आग्रह किया जाता है।" ____ जज साहबने कहा, “ इसमें क्या प्रमाण है कि, ब्राह्मण ग्रन्थ मूल वेदका व्याख्यान हैं ? फिर यह शङ्का उठती है कि वह व्याख्यान वेदानुकूल है अथवा नहीं ? " ___ तदनन्तर पं० ज्वालाप्रसादनी बोलने लगे। उन्होंने भी पिष्टपेषणसाही किया जिसे सुनकर जज साहबने स्पष्ट कह दिया कि आप लोग बराबर उत्तर नहीं देते हैं।
इतनेमें तीसरे सनातनी पण्डितने कहा कि, " गौणमुख्ययो
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