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(१३१) समझ गये हैं। मगर हम भ्रातभावसे आपसमें राजीनामा हो जावे और ऐसे क्लेश वृद्धिको प्राप्त न होवें इसमें अच्छा समझते हैं। आखिरकार मध्यस्थ पुरुषोंका वचन मान्य रखना मुनासब समझागया और परस्पर भ्रातृभावका राजीनामा लिखा गया ! यह वृत्तान्त जैसा मेरे अनुभवमें आया पाठकवृन्दको सूचनार्थ लिखा गया है। यदि इसमें कुछ न्यूनाधिक लिखा गया हो, तो दोनों ही पक्षवाले मुझपर क्षमा करें।
K. C. Bhutt. ( २६ जुलाई १९०८)
( नोट ) इस कार्यमें शहर जलंधरनिवासी यतिजी केसरऋपिजीने भी प्रशंसनीय मदद दी थी। इनकी धर्म पर पूर्ण श्रद्धा है। पढ़े हुए भी ये प्रायः यतिवर्गमें उच्च कोटिके लायक हैं। यदि इनके जैसा ख्याल अन्य यतिवर्गका होवे तो जैनधर्मोन्नति शीघ्र ही हो जावे । इतना ही नहीं बलकि जैनधर्मपर झूठे आक्षेप करने बालोंको खूब शिक्षा मिल जावे। “ पंडित भीमसेनजी शर्माके उद्गार"
गुजराँवाला पंजाब । जैनधर्मावलम्बी लोगोंमें कई फिर्के होने पर भी हुँडेरे और पुजेरे ये पंजाबमें विशेष कर हैं। पुजेरे जैनियोंमें एक आत्माराम साधु हो चुका है। उक्त साधुने एक पुस्तक अज्ञान तिमिर भास्कर नामक छपाया था जिसमें वेदादि मान्य शास्त्रोंकी ऋषि महर्षियोंकी
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