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(१३४) बारहवीं श्वेतांबर जैनकान्फरेंस
सादड़ी (मारवाड़) के समय दिया हुआ भाषण ।
ॐनमः वीतरागाय। यस्य निखिलाश्च दोषा न सन्ति सर्वे गुणाश्च विद्यन्ते । ब्रह्मा वा विष्णुर्वा हरो जिनो वा नमस्तस्मै । ( भावार्थ—जिसमें एक भी दोष नहीं है और जिसमें सारे गुण विद्यमान हैं उसको मैं नमस्कार करता हूँ। वह चाहे ब्रह्मा हो, विष्णु हो, महादेव हो या जिन, हो । ) ___ मान्य मुनिवरो ! सुशीला साध्वियो ! सभ्य सद्गृहस्थो और सन्नरियो ! आप सर्वका यहाँ पर उपस्थित होना कुछ अन्य ही कथन कर रहा है। रंग बिरंगी विचित्र पगड़ियों और लाल पीले अनेक प्रकारके कपड़ों व गहनोंसे सुसज्जित दो दलोंका एकत्रित होना तो अनेक विवाह ( शादी) जीमनवार आदि प्रसंगोंमें ही संभव है। परन्तु आपसे ही क्या ? सारी दुनियासे उल्टे रस्ते चलनेवाले हमारे दोदल जो आपको दिखलाई देते हैं उससे साफ जाहिर होता है कि, यह प्रसंग सांसारिक नहीं है, किन्तु धार्मिक है। इस लिए मैं भी यहाँ कुछ बोलनेका अधिकार रखता हूँ।
मेरा विचार और अधिकार । महाशयो ! यहाँ जो कुछ कहूँगा अपना निजका विचार कहूँगा। उसको मानना न मानना उस पर विचार करना न करना आपका
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