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कई लोगोंको
है । अन्यान्यस्थानोंमें ऐसी अनेक सभाएँ हो रही हैं । यदि इस सप्ताहको सभासप्ताहका नाम दिया जाय तो योग्य ही है । सभा ओंका उद्देश उन्नतिके सिवा और कोई नहीं है । यह बात सत्य ही माननी पड़ती है। मगर कभी कभी उससे विपरति कार्य होता सुनाई या दिखाई देता है । जिससे अरुचिसी हो जाती है । मेरी समझमें यह उनकी बड़ी भारी भूल है । इस तरह करनेसे पक्ष पड़ जाता है । एक दूसरे पर परस्परमें इल्जाम या दोष लगा देते हैं, उसका परिणाम बुरा होता है । संपके स्थान में कुसंप प्रीतिकी जगह अप्रीति, सुधारकी जगह बिगाड़, हो जाता है । इस लिए प्रिय महाशयो ! व्यक्तिगत कार्यको आगे खड़ाकर समष्टिका नाश करना बुद्धिमत्ता नहीं है । बड़ी मुश्किलसे, अनेक कष्ट सहनकर धन व्ययकर तीन दिनके लिए जो सम्मेलन होता है, उसमें तकरारी बातको स्थान न देकर जिस मुद्देकी बात के लिए, जिस उद्देशसे एकत्रित होते हैं उसका ही निराकरण होना उचित समझा जाता है ।
शान्तिकी योजना ।
बेशक यदि अशान्तिका कोई प्रश्न हो जिससे समाजपर बुरा असर होने की संभावना हो, कुसंपका बीज बोया जाता हो उसके लिये न्यायको मान देकर सभ्यतासे गंभीरता के साथ परस्पर विचाका मलानकर शान्त चित्तसे समाज के हितकी खातिर, थोड़े ही समयमें यदि निराकरण होता दिखलाई देवे तो कसरत रायसे कर देना योग्य है | परन्तु एक तुच्छसी बातकी खातिर अपना ही कक्का
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