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(१२२) दिखला कर निर्णय कर लेवें । यदि आपके पास पुस्तकें न हों, तो हमारे पास आकर देख लेवें, क्योंकि आपसमें विरोध फैलाना अच्छा नहीं है, और गुप्त बातोंको पबलिक ( सर्व साधारण ) में जाहिर करना, हम लोग अच्छा नहीं समझते हैं, फिर आपकी इच्छा ।"
इस नोटिसको पाकर वे लोग शान्त नहीं हुए, किन्तु शास्त्रार्थ करनेके लिये उत्तेजित करने, तथा अपने पण्डितोंको बुलानेका प्रबन्ध करने लगे। श्रीसंघ गुजराँवालाने भी मुनिराज श्रीवल्लभावजयजी महाराजको तारद्वारा सूचित किया, मुनिराज श्री दिल्लीमें चौमासा करना चाहते थे पर इस समाचारको सुनते ही फिर पंजाब आने वास्ते लौटे । पाठकगण ! सख्त गरमीके दिनोंमें चलनेके कारण पैरोंमे सूजन आ गई थी अतएव श्रावक भाई आग्रहसे अपने २ ग्रामोंमें विश्राम लेनेके लिये आग्रह करते थे, लेकिन जैन शासनकी किसी प्रकार हेलना न हो, इस लिये मुनिराज बड़े वेगसे विहार करने लगे। ऐसे ही मुनिराज धन्यवादके पात्र हैं ! और जैन पंडित श्रीव्रजलालजीको तारद्वारा सूचना दी । वे महाशय सूचना पाते ही यहाँ आ गये। ___ इधर सनातनी भाइयोंने पं० भीमसेन शर्मा, विद्यावारिधि पं० ज्वालाप्रसादजी मिश्र तथा पं० गोकुलचंदजी आदिको बुलाया। प्रथम पं० भीमसेनजी आये, उन्हें लेने वास्ते ढूँढक भाई भी स्टेशनपर गये थे, इतना ही नहीं बलकि पण्डितजीके गलेमें अपने हाथोंसे पुष्प माला भी डालते रहे ! तथा सनातन धर्मकी जयमें जय मिलाते थे।
दूसरे दिन, सनातनी भाइयोंकी ओरसे सायंकालके चार बजे
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