________________
(१२०) वह भेजा गया है, लिहाजा मुतकालफ खिदमत हूँ कि आप बमनशा हुक्म तामील फर्मावें ।१०माघ संवत् १९६२.अज़ सरिशतह ड्योढी।
पन्नालाल, सरिशतहदार । इस पत्र के उत्तर में कमेटी पंडितान ने श्रीमुनि वल्लभाविजय जी के नाम पत्र लिखा, उसकी नकल नीचे मूजिब है:___ ब्रह्मस्वरूप बावा साहिब जी श्रीमहात्मा वल्लभविजयजी साहिब साधु सलामत ।
नम्बर ७७६ सरकारवाला दाम हश्मतहू से चिट्ठी आपकी पेश होकर बदी जवाब बतवस्सुल ड्योढी मुबारिक व हवालह हुक्म खास बदी इरशाद सदूर हुआ कि बावा जी को इत्तला दी जावे कि जहाँ उन का मनशा हो, तबअ करावें । बखिदमत महात्मा जी नमस्कर दस्त बस्तह होकर इल्तिमास किया जाता है कि जहाँ आपका मनशा हो छपवाया जावे,
और जो फैसला तनाजअ बाहमी साधुआन् महात्मा का जो जैनमत के अनुसार पण्डितान ने किया था, आपके पास पहुंच चुका है, मुतलअ हो चुका है। तहरीर ११ माघ संवत् ११६२ ।। द० सपूर्णसिंह, अज़ सरिशतह कमेटी पण्डितान ।
गुजराँवालाका शास्त्रार्थ । "जैन पत्र सम्पादकजी महाशय, कृपाकर इस लेखको अपने पत्रमें छपवाकर प्रसिद्ध कर दीजिएगा। जिस समय यहाँ प्रतिष्ठा महोत्सव बड़ी धामधूमसे हुआ, उस उत्सवको देखत ही ढूँढक भाइयोंके पेटमें मारे द्वेषके ज्वलाएँ उठने
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org