________________
(१२४)
सभामें सनातनी, आर्यसमाजी, ढूँढक, सिख, मुसलमान आदि ५००० पाँच हजारके लगभग मनुष्य एकत्रित ( इकट्ठे ) हुए थे। थोड़ी ही देरमें पं० भीमसेनजीका भाषण प्रारम्भ हुआ जब भाषणके समाप्तिका समय कुछ बाकी था, इतनेमें जैन पं. व्रजलालजीने पत्रमें लिखकर सभापतिको सूचना दी कि दश मिनिट बोलनेकी इजाजत ( आज्ञा ) मुझे मिलनी चाहिये।
अनन्तर सभापतिकी आज्ञा पाकर उठकर वे बोलना चाहते थे, इतनेमें पं० भीमसेनजी बड़े आवेशसे बोल उठे कि-"प्रतिपक्षी जैनी ही बोल सकता है, न कि ब्राह्मण ! इस लिये बोलनेकी इजाजत आप को नहीं दी जायगी।"
उत्तर देते हुए पण्डितजीने गम्भीरतासे कहा कि,-" मैं जैनी हूँ अतएव आपका रोकना अनुचित है।" तदनन्तर पं. भीमसेन जीने कहा कि, यह हमको लिख दो । पंडितजीने लिख दिया, और उच्च स्वरसे कहा कि,---जैनी बननेका कारण वेदविहित हिंसा है।" ___यह सुनकर सभामें कोलाहल मच गया। मारे गुस्सेके पं० भीमसेनजीकी आँखें लाल हो गई। तदनन्तर इजाजत पाकर पण्डितजीने यह कहा;--" श्री आत्मारामजी महाराजने अज्ञान तिमिर भास्करमें वेदादिशास्त्रोंके जिन प्रमाणोंसे गोमेध, नरमेघ, तथा अश्वमेधादि दिखलाए हैं, तथा उन प्रमाणोंका जैसा हिन्दीभाषामें अनुवाद किया है, उनको सत्य सिद्ध करनेकेलिये हम तैयार हैं, परन्तु मध्यस्थ जरूर होना चाहिये । जो निष्पक्षपाती तथा संस्कृत भाषाके पदोंका
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org