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(१०८) वैश्य कोई भी क्यों न हो। धर्म सबके लिये समान है, नो चाहे उसका पालन करे । पहले कह चुका हूँ कि जीवदया भी क्षेत्र है । जीवोंको बचाना अपने शास्त्रोंका सिद्धान्त है, तदनुसार आप हजारों रुपये खर्च करते हैं । क्या इससे आपका उद्देश्य सिद्ध होता है ? आप जिनसे जी । छुड़ाते हैं उनके व्यापारमें कोई कमी नहीं दिखलाई देती । जबतक वे जीवहिंसाकी बुराइयोंको न जानेंगे तबतक अपना क्रूर कर्म नहीं छोड़ेंगे। इसके लिये उपदेशक, पुस्तके, ट्रेक्ट आदि साधनोंको काममे लाना चाहिये । अपनी मर्यादाका उल्लङ्घन न करके समयानुसार अगर हो सके तो साधुओंको खड़े होकर उपदेश देने में मेरी समझसे कोई अनुचित बात नहीं है। अनुचित काम वह है जिसके करने से अन्तःकरणकी वृत्ति मलिन हो । सिद्धसेन दिवाकरका वृद्धवादीसे जहाँ शास्त्रार्थ हुआ वहाँ कोई सभा नहीं थी किन्तु जङ्गल था । अहीर ( Cowherd ) मध्यस्थ थे, सिद्धन दिवाकर अपना पक्ष संस्कृत भाषा में सुनाते थे और वृद्धवादी ग्रामीण भाषा बोलते थे। मध्यस्थ अहीरोंने फैसला दिया, " वृद्धवादी पण्डित हैं, सिद्धसेन नहीं " बाद वृद्धवादीने सिद्धसेनसे कहा " यहाँ मध्यस्थ पण्डित नहीं थे इस लिये शहर में जाकर किसी योग्य व्यक्तिकी मध्यस्थतामें शास्त्राथ करें । " उत्तरमें सिद्धसन दिवाकरने कहा, " शास्त्रार्थ हो चुका जब कि मैंने समय ही नहीं पहिचाना तब तो मेरा हार जाना
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