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(११५) पढ़ने से अपने आपको जो कुछ आनंद प्राप्त होवे उसके साथ तुलना कर लेवे। ___ बस इस बात पर हम आनंद के वश होकर श्रीजैनधर्म की, श्रीमहाराज श्रीमद्विजयानंद सूरीश्वर श्रीआत्मारामजी महाराजकी, तथा नाभानरेश महाराज हीरासिंहजी बहादुर की जय बुलाने से नहीं रुक सकते हैं, बेशक धर्मी राजा हों तो ऐसे ही हों; महाराज साहिब ने अपनी न्यायकला द्वारा दूध और पानी को पृथक् २ करके दिखा दिया है, इस बात पर हम ऐसे धर्मात्मा न्यायवान् महाराजा साहिब को बारबार धन्यवाद देते हैं और प्रार्थना करते हैं कि महाराजा साहिब के तेज प्रताप ऋद्धि पुत्र पौत्रादि की प्रति दिन वृद्धि होवे साथ में अपने भूले हुए भाइयों से अरज गुजारनी मुनासिब समझकर हितशिक्षा रूप लिखा जाता है कि इस रीति का फैसला होने पर भी यदि आप अपने हठवाद को छोड़ने का उद्यम न करेंगे तो जरूर पक्षपात के प्रवाह में आपको गोते मारने पड़ेंगे। __ अब नाभा में हुए शास्त्रार्थ का फैसला–जिसका वर्णन प्रथम किया गया-लिखा जाता है।
( यह फैसले की अक्षरशः-हूबहू नकल है।) फैसला शास्त्रार्थ नाभा। ॐ श्रीगणाधिपतये नमः ।
श्रीमान् मुनिवर वल्लभविजयजी, पंडित श्रेणी सरकारनाभा इस लेख द्वारा आप को विदित करते
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