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( १०७ ) चतुर्विध प्त कहते हैं। श्रावक न हों, तो चतुर्विध सङ्घ नहीं बन सकता, न सातक्षेत्र ही रह सकते हैं।
श्रावक शब्द तीन अक्षरोंसे बना हुआ है। उनके अर्थ जानने से स्पष्ट मालुम होगा । 'श्रा पाके ' धातुसे 'श्रा ' बना है;-' श्रान्ति पचन्ति तत्त्वार्थश्रद्धानं निष्ठां नयन्ति इति श्राः ' ' श्रा' का अर्थ है तत्त्वोंको जाननेवाले । तत्वशब्दमे जीवा जीवादि नव पदार्थ लिये जाते हैं और देवगुरु धर्मरूप तीन तत्त्व भी लिये जाते हैं । 'डुंवप' बीज सन्ताने धातुसे 'व' बना है;' वन्ति गुणवस्सु क्षेत्रेषु धनबीजानि निक्षिपन्तीतिवाः ' इसका अर्थ है बोना । बोनेके लिये क्षेत्र और बीजकी जरूरत रहती है। क्षेत्रोंका परिचय पहले ही दिया गया है, बीजके जाननेकी आवश्यकता है । इमान्दारी अर्थात् साहूकारीसे जो धन पैदा किया जाय वह बीज है । साह्कार शब्दके लिये संस्कृतमें साधुकार शब्द है। धनरूप बीनका उक्त क्षेत्रोंमें बोना इसका मतलब साधु साध्वियोंको धन प्रदान करना नहीं है। यदि ऐसा मतलब लिया जायगा तो पाँचों व्रत उड़ जाएंगे, एकका भी ठिकाना न रहेगा । निर्दोष अन्न, पानी, स्थान, पात्र आदि देकर उनकी धर्म क्रियामें मदद पहुँचाना बोना है। ' कृ विक्षेपे ' धातुसे • क' बना है; किरन्ति क्लिष्टरको विक्षिपन्तीति काः' भीतरी सचित कर्मोको उड़ा देनेवाला 'क' कहलाता है। उक्त तीनों गुणों से युक्त जो होगा वह श्रावक है, चाहे वह ब्राह्मण, क्षत्रिय,
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