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अथवा पांचों अंगुलियोंके मिलनेसेही दाल चावल आदिका 6 ग्रास " ठीक ठीक उठाया जाता है, यदि पांचोंमेंसे एकभी अंगुलि बराबर साथमें ना मिले तो ग्रास नहीं उठाया जाता । जिसमें भी बडी अंगुलियोंको संकुचित होकर छोटीके साथ मिलकर काम करना पड़ता है । यदि बड़ी अंगुलियाँ संकुचित न होवे तो उनक मेलमें फरक पड़जानेसे निर्धारित कार्यकी भी सिद्धि यथाथ नहीं होती ।
सभ्य श्रोतृगण | आपने देखा, संप कैसी वस्तु है । पूर्वोक्त हस्तांगुलिके दृष्टांत से केवल संपकी ही शिक्षा लेनी योग्य है, इतनाही नहीं; बलकि, जैसे ग्रास ग्रहण करनेके समय बड़ी अंगुलियों के संकुचित हो, छोटीके साथ मिलकर काम करनेसे कार्यसिद्धि होती है, ऐसेही कार्यसिद्धिके लिये बड़े पुरुषों को किसी समय गंभीर बन छोटोंके साथ मिलकर ही काम ना योग्य है, नाकि, अपने बड़प्पनके घमंडमें आकर काम बेगाड़ना योग्य है । नीतिकारोंका कथन है - स्वार्थभ्रंशोहि मूर्खता - अपने मानमें तना स्वार्थका नाश करना, आला दर्जेकी मूर्खता है। मानके करने से प्रीतिका नाश होता है. शास्त्रकारोंकाभी फरमान है कि, माणो विषय-भंजणो--मान- विनय नम्रता गुणको नाश करता है । जहाँ नम्रता नहीं वहाँ प्रीतिका क्या काम ? और विना प्रीति संपका तो नामही कहाँ ? जब संप नहीं तो फिर बस ! कोई कैसा ही उत्तम कार्य करना क्यों न चाहे
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