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(१००) उपसंहार।
इसके अनंतर सभापतिजीका व्याख्यान ( आपकी आज्ञासे मुनिराज श्रीवल्लभविजयजी महाराजने ) जो पढ़कर सुनाया था वह नीचे दर्न किया जाता है।
"सभापतिजीका व्याख्यान।"
मान्य मुनिवरो ! आपकी शुभ इच्छासे मुनि सम्मेलनका कार्य निर्विघ्नतापूर्वक समाप्त हुआ, आपके प्रशंसनीय उत्साहको देखकर मुझे बहुत ही आनंद हो रहा है । मुझे पूर्ण आशा है कि भविष्यमें भी आपके सद् उद्योगसे ऐसे ही महत्वशाली और धर्म उन्नतिके कार्य होते रहेंगे।
महाशयो ! आजकल एकताकी बहुत खामी है । पिता पुत्रके बीच, गुरु शिष्यके अंदर, भाई भाईके मध्यमें, स्त्री पुरुषके दरमियान जिधर देखो उधर ही प्रायः मतभेद दिखाई देता है । परंतु अपने अर्थात् पूज्यपाद श्रीमद्विनयानंद सूरि श्रीआत्मारामजीके शिष्यसमुदायमें इसका समावेश अभीतक नहीं हुआ, यह बड़े ही हर्षकी बात है। ऐसी एकता सदैवके लिये बनी रहे इस बातका स्मरण रखना आपका परम कर्तव्य है। अपने में
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