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कदापि सिद्ध होनेका संभव नहीं । अतः संपकी अतीव आवा कता है । “ संप त्यां जंप ” इस गुजराती कहावतमें कितनी गंभीरता है। इसका विचार कर अपने हृदयकमलो कदापि इसको पृथक् नहीं होने देना चाहिये ।
दुनियाके लोग करामात करामात पुकारते हैं मगर मेरी समझमें-जमात ही करामात है। जमात ( समुदाय ) से अशक्य शक्य हो जाता है । जरा ख्याल करिये । कीड़ी कितना छोटा जानवर है; परंतु जमात मिलकर एक बड़े भारी साँपको खींचनेकी ताकत पैदा कर सकती है । तंतुमें वो सामर्थ्य नहीं परंतु तंतु समुदायसे हाथी बाँधा जाता है। इसलिये संपरूप सूत्रसे सबको ग्रथित होनेकी जरूरत है। संपरूप सूत्रसे बँधे हुए भी इतना ख्याल अवश्य करना योग्य है कि, जैसे ' झाडू' जब तक डोरीके बंधनमें होता है तबतक ही कचवर ( कचरे ) को निकाल सफाईके कामको कर सकता है, परंतु जब उसका बंधन छूट जाता है या टूट जाता है तो कचवरका निकालना तो दूर रहा उलटा वो आपही कचवर बन मकानको गंदा कर देता है । इसी प्रकार यदि हम संपसे बद्ध होंगे तो कई प्रकारकी कुरीतिरूप कचवरको निकाल सुधारारूप सफाइको करसकेंगे । वरना स्वयं ही कचवर बनने जैसा हो जायगा ।
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