________________
(९०)
कोई आदमी कुछ कह भी नहीं सकता, तो भी एक सामान्य नियमके कायम करनेसे भविष्यमें हमको चिंता करनेका कारण न रहेगा । यह नियम ऐसा है कि, जिससे धर्मकी हीलना होती बंध हो जायगी । कई एक वक्त दीक्षा लेनेवालेके सगेसंबंधियोंको बड़े क्लेशका कारण हो पडता है । और उससे निकम्मे खर्चमें उन्हें उतरना पड़ता है । आजकल कोई दीक्षा लेनेवाला किसीके पास आता है तो, कितनेक साधु प्रायः उसकी परीक्षा किये वगैर झट दीक्षा दे देते हैं, जिसका परिणाम ऐसा बुरा होता है कि, लोकोंकी धर्म में अप्रीति हो जाती है। एक ऐसा बनाव मेरे ध्यानमें है कि, किसीने एक शखसको दीक्षा दे दी, वह चौथे दिन ही उपाश्रयमें से अच्छे २ चंदरवे पूठिये तथा पुस्तक वगैरह जो हाथ आया लेकर रातोरात रफूचक्कर हो गया ! यह विना परीक्षा कियेकाही फल है। पूर्वोक्त बनाव अपने संघाड़ेमें नहीं बना तो भी अपनेको यह नियम जरूर करना चाहिये कि, कमसे कम एक महीना तक तो उसकी परीक्षा अवश्य करनी । बादमें योग्य मालूम हो तो दीक्षा देनी। ऐसा होनेसे दीक्षा लेनेवालेके चालचलनका पता लग ज.यगा और उसको साधुओंकी रीतिभाँतिका भी प्रायः कितनाक ज्ञान हो जायगा, साथ ही इसके इस बातकी भी जरूरत है कि, जब कोई दीक्षा लेने वास्ते आवे तो उसके संबंधियोंको सूचना कर देनी चाहिये, जिससे कि कई प्रकारके क्लेशद्वारा धर्ममें हानि न पहुँचे ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org