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प्रस्ताव दूसरा। बिना किसी खास कारणके अपने साधुओंको, एक चतुसिके ऊपर दूसरा चतुर्मास उसी क्षेत्रमें नहीं करना । तथा चतुर्मास पूरा होते ही शीघ्र विहार करदेना चाहिये । यदि किसी खास कारणसे आचार्य महाराज आज्ञा फरमातो, चतुर्मासके ऊपर दूसरा चतुर्मास करनेमें हरकत नहीं ।
यह प्रस्ताव मुनि श्रीहंसविनयजी महाराजने पेश किया था । जिसकी पुष्टि मुनि श्रीचतुरविजयजीने अच्छी तरहसे की थी।
प्रस्तावपर विवेचन करते हुए मुनि श्रीहंसविजयजी महाराजने कहा था कि,
“बहना पानी निर्मला, खड़ा सो गंदा होय ।।
साधू तो रमता भला, दाग न लागे कोय ॥" ___याने गंगादिका बहता प्रवाह जैसे स्वच्छ रहता है, वैसे ही रमते अर्थात् देशदेशमें विचरते साधु निर्मल रहते हैं। उनके किसी प्रकारका दाग भी नहीं लग सकता; परंतु जैसे छपड़ी ( खाबोचिया ) का खड़ा पानी गंदा हो जाता है, वैसे ही, एकके एक ही स्थानमें रहनेवाले साधुको दोष लगनेका संभव होता है, अतः साधुको एक स्थानमें रहना योग्य नहीं इत्यादि । अंतमें सर्वकी सम्मतिसे यह भी पास किया गया ।
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