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(८३) जैन सबसे आगे बढ़ा हुआ है । मान्य मुनिवरो। यदि इसी प्रकार जैनधर्मके रहस्य व तत्वोंका भली प्रकार वर्णन किया जावे तो क्या लोगों पर असर कुछ भी न होवे ? नहीं नहीं अवश्य ही होवे । इसलिये “गई सो गई अब राख रहीको" इस कहावत मूनिब आगेके लिये हुशियार होनेकी जरूरत है। मैनें आपका बहुत समय लिया है कृपया उसे दरगुजर कर, जो कुछ प्रकरणके असंगत या अनुचित छद्मस्थताके कारण कहा गया हो उसकी बाबत शुद्धांतःकरणपूर्वक मिथ्या दुष्कृत दे समाप्त करता हुआ, अपना प्रस्ताव पुनः मुनिमंडलके समक्ष पेश कर बैठ जाता हूँ। ____इस प्रस्तावके अनुमोदनपर मुनि श्रीविमलविनयजीने कहा कि, मान्य मुनिवरो ! मेरे परोपकारी गुरुजी महाराजने जो यह प्रस्ताव आप लोगोंके समक्ष विवेचनपूर्वक उपस्थित किया है इसपर कुछ कहनेके लिये मैं सर्वथा असमर्थ हूँ। क्यों कि कहाँ तो सूर्य और कहाँ खद्योत ? कहां समुद्र और कहां जलबिन्दु ? इसी तरह कहाँ तो आपका कथन ! और कहाँ उसपर मेरा कुछ कहना ! इस लिये मैं आपके प्रस्तावका अक्षर अक्षर सन्मानपूर्वक स्वीकार करता हुआ इतनी प्रार्थना करता हूँ कि, जाहिर व्याख्यान देनेका अभ्यास जिनका हो उनके पाससे थोडा २ समय लेकर हमेशह सीखना चाहिये,
और बड़ोंको भी कृपा कर उन्हें बोलनेका थोड़ा थोड़ा अभ्यास कराना चाहिथे, ताकी एक दिन आम खास ( पबलिक ) में
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