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(८६) सिवाय और धनधान्यादिकी मदद हो ही नहीं सकती ! क्यों कि साधुको रुपया पैसा रखना जैनशास्त्रका हुक्म नहीं है। इतना ही नहीं बलकि, निष्पक्ष हो विचार किया जावे तो, किसी धर्मशास्त्रमें भी साधुको धन रुपया पैसा रखनेकी आज्ञा नहीं ! जैनदृष्टिसे या पूर्वाचार्योंकी दृष्टिसे देखा जाय तो पैसा रखनेवाला दर असल साधु ही नहीं माना जाता लोगों में भी प्रायः सुनने में आता है कि, धन गृहस्थका मंडन है
और साधुका भंडन है । गृहस्थके पास कौड़ी न हो तो वो कौड़ीका और साधुके पास कौड़ी हो तो वो कौड़ीका। ___अंतमें सर्वकी सम्मति अनुसार यह नियम स्वीकार किया गया ।
प्रस्ताव सोलहवाँ। __ अहमदावादके मोहनलाल टल्लुमाई नामक मनुष्यके निकाले हुए हेन्डबिलमें, अपने परमपूज्य परमोपकारी जगद्विख्यात आचार्य महाराज श्रीमद्विजयानंद सूरि तथा प्रवर्तक श्रीकांतिविजयजी महाराज तथा मुनि वल्लभविनयजी पर अश्लील आक्षेप किये हैं । जिससे पंजाब वगैरह देशोंके श्रावक वर्गका दिल अत्यंत ही दुःखी हुआ था। उस. वक्त अपने साधुओंने और खास कर प्रवर्तकनी महाराज तथा वल्लभविजयजीने शांततापूर्वक उनको समझाकर शांत
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