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प्रस्ताव छठा। साधु प्रायः मोटे मोटे शहरोंमें और उसमें भी खासकर गुजरात देशमें ही, चतुर्मास करते हैं; परंतु साधुओंके विहारसे अलभ्य लाभ हो, ऐसे स्थलों में जैसे कि, मारवाड़, मेवाड़, मालवा, पंजाब, कच्छ, बागड़, दक्षिण, पूर्व वगैरह देशोंमें साधु
ओंका जाना थोड़ा मालूम देता है। साधुओंके न जानेसे जैनधर्म पालनेवाले संख्याबंध अन्यधर्मी हो गये, और होते जाते हैं इस बातपर, इस मुनिमंडलको मानपूर्वक ध्यान देना चाहिये,
और सम्मति प्रगट करनी चाहिये कि, साधुओंको गुजरात छोड़ हिन्दुस्तानके हरएक हिस्सों में विहार करनेकी तनवीन करनी चाहिये।
इस प्रस्तावको मुनिराज श्रीवल्लभविजयजी महाराजने पेश करते हुए कहा कि-" महाशयो ! आप अच्छी तरह जानते हैं कि, साधु मोटे मोटे शहरों में संख्याबंध पंदरा पंदरा बीस बीस हमेशह पड़े रहते हैं। लेकिन, ऐसे बहुत ग्राम खाली रह जाते हैं जहाँपर शहरोंके बनिसबत अलभ्य लाभ हों कितनेक साधु तो विहारकी सुगमता और आहार पाणीकी सुलभताको देखकर गुजरात देश छोड़ अन्य देशोंमें जानेकी इच्छा भी नहीं करते । जाना तो दरकिनार । फिर ख्याल करो कि जो साधुओंके लिये परिषह सहन करनेकी भगवतने आज्ञा फरमाई है उसका
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