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इसको मुनि श्रीजिनविजयजीने पुष्टि करते हुए कहा कि, पूज्य मुनिवरो ! मुनि श्रीविमलविजयजी महाराजने जो प्रस्ताव पेश किया है, इसपर मुनि सम्मेलनको विचार करनेकी पूरी आवश्यकता है, इस नियमके पास होनेसे, कई प्रकारके फायदे हैं। प्रथम तो, यही बड़ा लाभ होगा कि, साधुओंकी स्वच्छंदता बढ़नी बंद हो जावेगी नहीं तो आपसमें अर्थात् गुरु शिष्यों में या गुरुभाई आदिमें छदमस्थ होनेसे, साधारण भी बोलचाल या खटपट हो गई हो, तो झट दूसरे साधुके पास जाने के इरादेसे, यह जानके कि क्या हैं ! यहाँ नहीं मन मिला तो दूसरे के पास जा रहेंगे, समुदाय से पैर बाहर रखनेकी, मरजी हो जायगी और जब ऐसा होगा तो विनयादि गुण, जो खास मुनिके भूषणरूप हैं उनका नाश होगा | यह तो आप अच्छी तरह जानते हैं कि आजकलके साधारण जीवोंमें कितना वैराग्य और विरक्त भाव है । इस लिये इस नियमके करनेसे स्वछंदताका कारण नष्ट होगा क्योंकि, जब कोई नाराज हो कर दूसरे साधुके पास जानेका इरादा करेगा तो वह पहले इस बातको अवश्य विचार लेगा कि, मैं दूसरे के पास जाता तो हूँ परंतु आचार्य महाराजकी आज्ञा बगैर तो अन्य रखेंगे ही नहीं और जब आचार्यश्रीकी आज्ञ मँगाऊँगा तो सारा वृत्तांत ही प्रगट हो जायगा । फिर तो, जैसी आचार्यनीकी मरजी होगी तदनुसार बनेगा इत्यादि विचार स्वयं ठिकाने आ जावेगा और ऐसा होनेसे वह गुण प्रगट होगा कि
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