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(१९) निर्विवाद है । आत्माके साथ कौंका संबंध कब हुआ ? इसका संक्षेपसे सरल और स्पष्ट उत्तर यही है कि, वह अनादि है । जैसे बीज और वृक्षका संबंध प्रवाहसे अनादि है, इसी तरह जीव और कर्मका भी अनादि संबन्ध है।
सज्जनो ! आत्मा, मुक्त और संसारी भेदसे दो प्रकारका है। जिस आत्माने अनेक प्रकारके कर्मजन्य बन्धनोंको तोड़ कर मोक्षको प्राप्त कर लिया है वह मुक्त कहलाता है । इसके विपरीत अर्थात् कर्मोंसे जो बद्ध है वह संसारी अथवा बद्ध आत्मा कहलाता है । इस लिए जिस साधनके द्वारा-आत्मागे गुप्त रूपसे रहनेवाली ज्ञान दर्शन और चारित्र आदि अनन्त शक्तियोंके यथावत् प्रकट होनेपर निरतिशय आनंद रूप मोक्षको यह आत्मा प्राप्त हो, उसका नाम धर्म है। अर्थात् आत्माको वैभाविक-हीन दशासे निकाल कर उन्नतिकी पराकाष्टामें पहुंचानेवाला जो कोई साधन है, उसे शास्त्रकारोंने धर्मके नामसे व्यवहृत किया है। अब आप विचार सकते हैं कि, जो धर्म इस प्रकारके सुखका देनेवाला हो, फिर उसके नामसे इतनी मारामारी चले ! इसका कोई अवश्य कारण होना चाहिए । जब तक इस कारणका अन्वेषण न किया जाय तब तक एकताकी आशा करना मनोरथ मात्र है ! . गहस्थो ! परस्पर धर्मोकी विभिन्नता रहने पर भी किसी प्रस्तुत शुभ कार्यके लिए भेदभावको त्यागकर सबको एकमत
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